भारत पर मुस्लिम आक्रमण (712 - 1206 ई.) Muslim invasion on India (712 - 1206 A.D.)

भारत पर मुस्लिम आक्रमण (712 - 1206 ई.) Muslim invasion on India (712 - 1206 A.D.)

 712 ई. में मुहम्मद बिन कासिम का आक्रमण

* सातवीं सदी के मध्य में अरबवासियों ने भारत में घुसने का असफल प्रयास किया। इसके पश्चात्‌ मुहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में अरबों ने 712 ई. में भारत पर पहला सफल आक्रमण किया और सिंध पर विजय प्राप्त की।
* मुहम्मद बिन कासिम भारत पर आक्रमण करने वाला पहला मुस्लिम था। उसने सिंध के शासक दाहिर को हराया और प्रांत को ओमैयद खिलाफत को दे दिया। इस प्रकार सिंध पर अरबों का नियंत्रण हो गया लेकिन पश्चिमी भारत में शक्तिशाली प्रतिहार साम्राज्य की उपस्थिति के कारण वे भारत में आगे नहीं घुस सके।
* मुहम्मद बिन कासिम की मृत्यु के कारण भारत में अरबवासियों का राज्य स्थिरता को प्राप्त नहीं कर सका। भारत पर अरबवासियों के आक्रमण का मुख्य उद्देश्य यहाँ की सम्पत्ति को नष्ट करना तथा यहाँ इस्लाम धर्म का प्रचार करना था, लेकिन इस आक्रमण का भारत के राजनीतिक क्षेत्र में कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा।
* लेनपूल के अनुसार, “सिंधु की विजय एक घटना मात्र है। इसका कोई स्थायी प्रभाव नहीं हुआ'', किंतु इतना तो निश्चित है कि भविष्य में भारत पर आक्रमण करने वालों को प्रोत्साहन जरूर प्राप्त हुआ।
* 'चचनामा' (फतहनामा सिंध) से अरबों के आक्रमण के विषय में पर्याप्त जानकारी मिलती है।

 महमूद गजनवी के आक्रमण (1001 ई. से 1027 ई. तक)

* नौवीं शताब्दी के अंत में अरब का विशाल साम्राज्य बिखर गया और बगदाद के खलीफाओं पर बढ़त हासिल करने वाले तुर्कों ने कई स्वतंत्र रियासतें स्थापित कीं।  ऐसे ही एक तुर्क राज्य की स्थापना तुर्क सरदार अलप्तगीन ने 933 ई. में गजनी को अपनी राजधानी बनाकर की थी। इस तुर्क राज्य को गजनी साम्राज्य (यामिनी वंश) के रूप में जाना जाता था।
* अलप्तगीन के बाद अलप्तगीन का गुलाम तथा दामाद सुबुक्तगीन 977 ई. में गजनी की गद्दी पर बैठा।
* 986 ई. में गजनी के सुबुक्तगीन ने भारत के पश्चिमोत्तर भाग पर आक्रमण किया। यह भारत पर पहला तुर्की आक्रमण था। उन दिनों पंजाब और भारत के उत्तर-पश्चिम पर शाही वंश (हिंदुस्तानी) के जयपाल का शासन था। सुबुक्तगीन ने जयपाल से युद्ध किया और उसे पराजित किया।
* महमूद गजनवी सुबुक्तगीन का सबसे बड़ा पुत्र था, जिसका जन्म 971 ई. में हुआ था और वह 998 ई. में गजनी के सिंहासन पर बैठा। अपने पिता के काल में महमूद गजनवी खुरासान का शासक था। महमूद गजनवी सुल्तान की उपाधि धारण करने वाला पहला शासक था। बगदाद के खलीफा अल आदिर बिल्‍लाह ने महमूद गजनवी को  'यमीन-उद्‌-दौला' तथा 'आमीन-उल-मिल्‍लाह' की उपाधि दी थी।
* महमूद गजनवी ने 1001 ई. से 1027 ई. तक भारत पर 17 बार आक्रमण किया। उसके आक्रमण का उद्देश्य अधिक धन लूटना था। महमूद गजनवी के अभियानों का उद्देश्य लूटपाट करना था। उसे भारत में अपना साम्राज्य बढ़ाने में कोई दिलचस्पी नहीं थी।
* महमूद गजनवी के पहले आक्रमण का सामना 1001 ई. में हिन्दूशाही वंश के शासक जयपाल ने किया। वैहिन्द के निकट हुए युद्ध में जयपाल पराजित हुआ एवं उसने आत्महत्या कर ली। जयपाल का बेटा आनंदपाल सिंहासन पर बैठा।
* महमूद गजनवी ने 1006 ई. में मुल्तान पर आक्रमण किया। उस समय मुल्तान का शासक अब्दुल फतह दाऊद था।
* 1009 ई. में महमूद गजनवी ने पेशावर पर हमला किया। इस समय पेशावर हिन्दूशाही शासक आनन्दपाल के अधीन था।
* 1025 ई. में महमूद गजनवी ने गुजरात के काठियावाड़ के समुद्र तट पर स्थित सबसे प्रसिद्ध हिंदू शिव मंदिर सोमनाथ मंदिर को लूटा। यह उसका सोलहवाँ आक्रमण था। उस समय गुजरात का शासक भीम प्रथम था। महमूद गजनवी ने खुद को बुत शिकन या मूर्तियों को नष्ट करने वाला बताया।
* महमूद गजनवी ने 1027 ई. में अन्तिम हमला जाटों के विद्रोह को दबाने के लिए किया।
* 1030 ई. में महमूद गजनवी की मृत्यु हो गई। महमूद गजनवी की मृत्यु के बाद एक शक्तिशाली साम्राज्य सेल्जुक साम्राज्य अस्तित्व में आया।
* खीवा निवासी अलबरूनी, तारीख-ए-सुबुक्तगीन के लेखक बैहाकी एवं उत्बी महमूद गजनवी के साथ भारत आए थे।
* मध्यकालीन मुस्लिम इतिहासकारों द्वारा महमूद गजनवी को इस्लाम का नायक माना जाता है क्योंकि उन्होंने मध्य एशियाई तुर्की आदिवासी आक्रमणकारियों के खिलाफ मजबूती से बचाव किया था। दूसरा, क्योंकि वे ईरानी भावना के पुनर्जागरण से निकटता से जुड़े थे। उन्होंने ईरानी पुनर्जागरण में एक उच्च शिखर फिरदौसी के शाहनामा के साथ हासिल किया।
* महमूद गजनवी ने फिरदौसी (दरबारी कवि), अलबरूनी (विद्वान) और उत्बी (दरबारी इतिहासकार) को संरक्षण दिया। अलबरूनी ने 'किताब-उल-हिंद' या 'तहकीक-ए-हिंद' और फिरदौसी ने 'शाहनामा' लिखा।

* महमूद गजनवी ने चांदी के सिक्के (दिरहम) जारी किए थे, जिनकी एक तरफ संस्कृत में और दूसरी तरफ अरबी में मुद्रालेख अंकित थे।

मुहम्मद गोरी के आक्रमण

* महमूद गजनवी की मृत्यु के बाद गजनी साम्राज्य अब एक शक्तिशाली साम्राज्य  नहीं रह गया था। उसके उत्तराधिकारी कमजोर थे जिसके परिणामस्वरूप सेल्जुक साम्राज्य का उदय हुआ। लेकिन 12वीं शताब्दी के मध्य में, तुर्की जनजाति के लोगों के एक अन्य समूह ने सेल्जुक तुर्कों की शक्ति को चकनाचूर कर दिया।
* सुल्तान अलाउद्दीन के अधीन गौरीद (Ghurids) की शक्ति बढ़ गई, जिसने विश्व को जलाने वाले (World burner) की उपाधि अर्जित की, क्योंकि उसने गजनी को तबाह कर दिया और उसे जमीन में जला दिया।
* 1173  ई. में मुइज्जुद्दीन मुहम्मद (शहाबुद्दीन मुहम्मद गोरी) गजनी के सिंहासन पर बैठा, जबकि उसका बड़ा भाई गौर में शासन कर रहा था। 

* मुहम्मद गोरी ने 1175 ई. में सबसे पहले भारत में मुल्तान पर आक्रमण किया। मुहम्मद गोरी ने मुल्तान और कच्छ पर विजय प्राप्त की।
* 1178 ई. में मुहम्मद गोरी ने राजपुताना रेगिस्तान में मार्च करके गुजरात में प्रवेश करने का प्रयास किया, लेकिन गुजरात के शासक मूलराज द्वितीय द्वारा उसे पूरी तरह से उखाड़ फेंका गया। मुहम्मद गोरी गुजरात के शासक मूलराज द्वितीय से बुरी तरह पराजित हुआ।
* मुहम्मद गोरी ने भारत पर आक्रमण करने से पहले पंजाब में एक उपयुक्त आधार बनाने की आवश्यकता को महसूस किया। उन्होंने पेशावर, लाहौर और सियालकोट पर विजय प्राप्त की। उस समय चौहान शक्ति लगातार बढ़ रही थी। चौहानों ने सदी के मध्य में तोमरों से दिल्ली पर कब्ज़ा कर लिया था। 11 वर्ष की आयु में पृथ्वीराज चौहान (पृथ्वीराज तृतीय) अजमेर की गद्दी पर बैठे और विजय अभियान की शुरुआत की। उन्होंने महोबा के पास एक युद्ध में बुंदेलखंड के चंदेलों पर आक्रमण किया। पंजाब और गंगा घाटी की ओर पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गोरी का ध्यान दोनों महत्वाकांक्षी शासकों के बीच संघर्ष की स्थिति में आ गया।
* 1191 ई. में तराइन का प्रथम युद्ध हुआ, जिसमें मुहम्मद गोरी पृथ्वीराज चौहान से पराजित हुआ। तराइन के प्रथम युद्ध (1191) में पृथ्वीराज चौहान ने मुहम्मद गोरी की सेना को पूरी तरह से खत्म कर दिया।
* 1192 ई. में तराइन के द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की पराजय हुई। मुहम्मद गोरी उसे बन्दी बनाकर अफगानिस्तान ले गया। पृथ्वीराज को कुछ समय के लिए अजमेर पर शासन करने की अनुमति दी गई थी। लेकिन कुछ समय बाद षड्यंत्र के आरोप में उसे फांसी दे दी गई। तराइन के द्वितीय युद्ध (1192) को भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ माना जाता है। बेहतर संगठित और अच्छी तरह से तैयार तुर्की सेना ने भारतीय सेना को हरा दिया। इस हार ने भारत में मुस्लिम शासन की नींव रखी। ऐसा कहा जाता है कि कन्नौज (गहड़वाल राज्य) के शासक जयचंद ने तराइन के दूसरे युद्ध (1192) में पृथ्वीराज की मदद नहीं की क्योंकि पृथ्वीराज चौहान ने जयचंद की बेटी संयोगिता का अपहरण कर लिया था, जो उससे प्यार करती थी। पृथ्वीराज के दरबारी कवि चंदबरदाई द्वारा रचित पृथ्वीराज रासो में पृथ्वीराज के जीवन और उसकी प्रेम कहानी को दर्शाया गया है।  
* बाद में 1194 ई. में, कन्नौज के गहड़वाल शासक जयचंद को भी मुहम्मद गोरी द्वारा चन्दावर के युद्ध में पराजित किया गया।
* भारत में तुर्की राज्य का संस्थापक मुहम्मद गोरी को माना जाता है। मुहम्मद गोरी ने अपने गुलाम सेनापतियों को भारतीय क्षेत्रों का शासक बनाया। कुतुबुद्दीन ऐबक को दिल्‍ली तथा आस-पास का क्षेत्र दिया गया। बाद में कुतुबुद्दीन ऐबक दिल्ली सल्तनत का पहला शासक बना। दिल्ली सल्तनत पर 34 शासकों और 5 राजवंशों ने शासन किया।
* मुहम्मद गोरी के सेनापतियों में से एक बख्तियार खिलजी ने पूर्वी भारत का अभियान किया। उसने बिहार और बंगाल पर कब्जा कर लिया और नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालयों को नष्ट कर दिया।
* मुहम्मद गोरी के सिक्कों पर एक ओर कलमा खुदा रहता था तथा दूसरी ओर लक्ष्मी की आकृति अंकित रहती थी।
* 15 मार्च, 1206 ई. को खोखरों के साथ युद्ध में मुहम्मद गोरी मारा गया। मुहम्मद गोरी की मृत्यु के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक उसके भारतीय साम्राज्य का शासक बना और उसने भारत में गुलाम वंश की स्थापना की।

भारत पर तुर्कों की सफलता के कारण

* राजपूतों में राजनीतिक फूट और आंतरिक प्रतिद्वंद्विता।
* कोई केंद्रीय सरकार नहीं।
* बार-बार हमलों के बाद भी असुरक्षित सीमाएँ।
* संगठित तुर्की सेना और महत्वाकांक्षी तुर्की आक्रमणकारी।


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

HOT!SUBSCRIBE GKBIGBOSS YOUTUBE CHANNELCLICK HERE