रिश्वत लेकर सदन में बोलने/वोट देने के मामले में सांसदों/विधायकों को दी जाने वाली छूट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही 25 साल पुराने फैसले को पलटा।

  

4 मार्च, 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने एक दूरगामी महत्व के फैसले में पीवी नरसिम्हा राव मामले (झारखंड मुक्ति मोर्चा रिश्वत कांड) में 1998 में दिए गए फैसले को पलट दिया है और फैसला सुनाया है कि सदन में वोट देने या भाषण देने के लिए रिश्वत लेना अपराध है। ऐसे मामलों में आपराधिक मुकदमा चलाने से कोई छूट नहीं है। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संविधान पीठ ने 1998 में झारखंड मुक्ति मोर्चा रिश्वतखोरी मामले यानी नरसिम्हा राव मामले में 3-2 के बहुमत से फैसला सुनाया था कि अगर कोई सांसद या विधायक रिश्वत लेकर सदन में वोट करता है या भाषण देता है तो उन्हें संसदीय विशेषाधिकार प्राप्त होंगे और उनके खिलाफ कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं किया जाएगा।
25 साल पहले 5 सदस्यीय संविधान पीठ द्वारा दिए गए फैसले को पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट की 7 सदस्यीय संविधान पीठ ने फैसला सुनाया है कि ऐसे सांसदों और विधायकों को वोट देने या भाषण देने के लिए रिश्वत लेने के मामलों में संविधान के अनुच्छेद 105 और 194 के तहत विशेषाधिकार का कवर नहीं दिया जाएगा।  मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति ए.एस. बोपन्ना, न्यायमूर्ति एम.एस. सुद्रैश, न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा, जस्टिस जे.बी. पार्डीवाला, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस मनोज मिश्रा की 7 सदस्यीय पीठ ने 4 मार्च को सर्वसम्मत फैसले में कहा कि रिश्वत लेने का अपराध उसी क्षण होता है जब एमपी-एमएलए रिश्वत लेता है या लेने के लिए तैयार हो जाता है। इसके बाद यह मायने नहीं रखता कि वह वोट देगा या नहीं।
संविधान के अनुच्छेद 105(2) में कहा गया है कि कोई भी सांसद, संसद या उसकी किसी समिति में कही गई किसी भी बात या दिए गए वोट के सम्बन्ध में किसी भी अदालत में कार्यवाही के लिए उत्तरदायी नहीं होगा। वहीं, राज्य विधान सभाओं के सदस्यों को यही छूट देने वाला एक प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 194(2) में निहित है।सर्वोच्च न्यायालय के 7 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 4 मार्च, 2024 के अपने फैसले में कहा कि संविधान के ये प्रावधान ऐसे वातावरण को बनाए रखने के लिए हैं, जो स्वतंत्र विचार विमर्श की सुविधा देता है। सदस्य को भाषण या वोट देने के लिए रिश्वत दी जाती है, तो इन अनुच्छेदों का उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है।
इस आशय के तर्क के साथ सर्वोच्च न्यायालय की 7 सदस्यीय संविधान पीठ ने 5 सदस्यीय संविधान पीठ के 17 अप्रैल, 1998 के 3-2 के बहुमत से सुनाए गए फैसले को 4 मार्च, 2024 को पलट दिया है।
सर्वोच्च न्यायालय में यह मामला 2012 में उस समय उठा जब झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के नेता शिव सोरेन की बहू सीता सोरेन ने राज्य सभा चुनाव में रिश्वतखोरी के आरोप में इनके विरुद्ध मुकदमा चलाए जाने की सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। सीता सोरेन की याचिका को सर्वोच्च न्यायालय के दो न्यायाधीशों की पीठ ने 23 विसम्बर, 2014 को बड़ी पीठ को सन्दर्भित किया। 5 न्यायाधीशों की पीठ ने इस मुद्दे को तथा सर्वोच्च न्यायालय ने 17 अप्रैल, 1998 को पुनर्विचार के लिए 20 सितम्बर, 2023 को 7 न्यायाधीशों की पीठ को भेजा। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी.वाई. चन्द्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 7 न्यायाधीशों की पीठ ने 3 अक्टूबर, 2023 को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रखा जो 4 मार्च, 2024 को सुनाया गया है।

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